हनुक्का उत्सव पर दो मुस्लिम बाप-बेटे का आतंकी हमला
सिडनी के प्रसिद्ध बॉन्डी बीच पर 14 दिसंबर 2025 को हनुक्का समारोह के दौरान हुए आतंकी हमले ने ऑस्ट्रेलिया को झकझोर दिया। पाकिस्तानी मूल के दो मुस्लिम बाप-बेटे साजिद अकरम (50) और नवीद अकरम (24) ने अंधाधुंध गोलीबारी कर 15 से 16 लोगों की हत्या कर दी, जिनमें एक 10 साल की मासूम बच्ची और एक इजरायली नागरिक शामिल हैं। दर्जनों घायल हुए। पुलिस ने साजिद को मौके पर मार गिराया, जबकि नवीद गंभीर रूप से घायल है और अस्पताल में पुलिस हिरासत में।
हमलावरों की पहचान: पाकिस्तानी कनेक्शन और ISIS प्रेरणा
साजिद और नवीद अकरम सिडनी के बोनीरिग इलाके में रहते थे। साजिद के नाम पर छह वैध लाइसेंसी हथियार थे, जिनका इस्तेमाल हमले में हुआ। पुलिस ने उनके घर से IED बम और ISIS के झंडे बरामद किए। रिपोर्ट्स के अनुसार, नवीद हाल ही में ISIS से जुड़ा था और अल-मुराद इस्लामिक इंस्टीट्यूट में मजहबी शिक्षा ले रहा था, जहां से उसका इस्लामिक रेडिकलाइजेशन हुआ। पाकिस्तान में जन्मे नवीद की इस्लामिक शिक्षा ने उसे यहूदियों से नफरत सिखाई।
सुनियोजित साजिश: यहूदियों को निशाना
पुलिस आयुक्त माल लैंयन ने इसे यहूदी समुदाय पर लक्षित आतंकी हमला घोषित किया। घटनास्थल पर दो IED मिले, जिन्हें बम निरोधक दस्ते ने निष्क्रिय किया। हमलावरों ने परिवार को मछली पकड़ने जाने का बहाना बनाया, लेकिन असल में हमले की तैयारी कर रहे थे। यह एंटी-सेमिटिज्म (यहूदियों के प्रति नफरत) की बढ़ती लहर का हिस्सा है, जो इस्लामिक शिक्षा से प्रेरित है।
एक एक्स-मुस्लिम के नजरिए से, यह हमला इस्लाम, कुरान और हदीस की व्याख्याओं का नतीजा है। कुरान और हदीस की कुछ व्याख्या और मदरसे-संस्थान युवाओं को जिहाद और गैर-मुस्लिमों से नफरत सिखाते हैं। ISIS जैसे संगठन इसी विचारधारा से पनपते हैं। पाकिस्तानी मुस्लिम हमलावरों का यह कृत्य दिखाता है कि कैसे इस्लामी रेडिकलाइजेशन पश्चिमी देशों में घुसपैठ कर रहा है। कुरान की कुछ आयतों को पढ़ कर समझते हैं कि कुरान और हदीस किस तरह गैरमुसलमानों के प्रति नफ़रत फेलता है।
लड़ो उन लोगों से जो अल्लाह और आख़िरत (क़यामत के दिन) पर ईमान नहीं रखते, और न अल्लाह और उसके रसूल ने जो चीज़ हराम की है उसे हराम करते हैं, और न दीन-ए-हक़ (सच्च) को क़बूल करते हैं—उन अहल-ए-किताब (यहूदियों और ईसाइयों) में से—यहाँ तक कि वे जज़िया अपने हाथ से अदा करें जबकि वे अधीन (और छोटे) हों।
“फिर जब हराम के महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ पाओ क़त्ल करो और उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर अगर वे तौबा करें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो उनका रास्ता छोड़ दो। बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।”
“ऐ ईमान वालो! यहूदियों और ईसाइयों को अपना सरपरस्त/संरक्षक/गहरा दोस्त (अव्लिया) न बनाओ। वे आपस में एक-दूसरे के सरपरस्त हैं। और तुममें से जो कोई उन्हें अपना सरपरस्त बनाएगा, वह उनमें से ही होगा। बेशक अल्लाह ज़ालिम कौम को हिदायत नहीं देता।”
हदीस का पाठ (सहीह बुखारी 2926 से):
“अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने फरमाया: ‘क़यामत की घड़ी कायम नहीं होगी जब तक मुसलमान यहूदियों से नहीं लड़ेंगे, और वह यहूदी पत्थर या पेड़ के पीछे छुपेगा, तो पत्थर या पेड़ बोलेगा: ऐ मुसलमान! मेरे पीछे एक यहूदी छुपा है, आकर उसे क़त्ल करो।'”
यह हदीस अबू हुरैरा (रज़ि.) से रिवायत की गई है।
ऑस्ट्रेलिया में बढ़ता एंटी-सेमिटिज्म (यहूदियों के प्रति) नफरत और इस्लामिक कट्टरवाद
प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने इसे “शुद्ध बुराई” और “एंटी-सेमिटिज्म का कृत्य” कहा। लेकिन सवाल यह है कि कब तक हम ऐसे हमलों को “अलग-थलग घटना” कहकर नजरअंदाज करते रहेंगे? मुस्लिम समुदाय को खुद आगे आकर इस्लाम की कट्टर व्याख्याओं का विरोध करना होगा। इस्लाम में सुधार जरूरी है, ताकि हनुक्का जैसे खुशी के मौकों पर खून की होली न खेली जाए।अगर मुस्लिम समाज ऐसा नहीं करता है तब दुनिया इस प्रकार की आतंकी हमलों का जवाब मुस्लिम हिंसा के तौर पर करेगी तब कोई भी आपके आंसू नहीं देखेगा।
यह हमला ऑस्ट्रेलिया के इतिहास का सबसे भयानक आतंकी कांड है। मारे गए निर्दोषों को श्रद्धांजलि, लेकिन इस्लामी कट्टरवाद की जड़ें उखाड़ना अब अनिवार्य है। नफरत की यह विचारधारा दुनिया की शांति के लिए खतरा है।





