मौलाना मदनी का भड़काऊ बयान: जुल्म होगा तो जिहाद भी होगा?

मौलाना मदनी का भड़काऊ बयान: जुल्म होगा तो जिहाद भी होगा?

मौलाना महमूद मदनी का भड़काऊ बयान: जुल्म होगा तो जिहाद भी होगा

फिर वही पुराना नारा, फिर वही खूनी इतिहास

29 नवंबर 2025, भोपाल। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने भोपाल में जो कहा, वह कोई नया नहीं है। “जब-जब जुल्म होगा, तब-तब जिहाद होगा” – यह वाक्य सुनते ही भारत के इतिहास की खूनी किताब के पन्ने अपने आप पलटने लगते हैं। यही नारा, यही जज्बा, यही जिहाद का नाम लेकर इस देश में कई बार नरसंहार हुए हैं।

याद कीजिए:

16 अगस्त 1946 – डायरेक्ट एक्शन डे: कलकत्ता में “ऑल इंडिया मुस्लिम लीग” के नेता सुहरावर्दी और जिन्ना ने “जिहाद” का ऐलान किया। नतीजा? सिर्फ 4 दिनों में 5000 से ज्यादा हिंदू मारे गए, 15,000 से ज्यादा घायल हुए। लाशों के ढेर लगे, शहर खून से लाल हो गया। इसी जमीयत ने उस जिहाद को जायज ठहराया था।

नोआखाली नरसंहार (अक्टूबर 1946): बंगाल के नोआखाली और तिप्पेरा में “जिहाद” के नाम पर हिंदुओं का कत्लेआम हुआ। हजारों हिंदू मारे गए, सैकड़ों महिलाओं का बलात्कार हुआ, जबरन धर्मांतरण कराए गए। गांधीजी को वहाँ भूख हड़ताल करनी पड़ी थी। उस जिहाद का नारा भी यही था – “जुल्म के खिलाफ जिहाद”

1921 – मोपला हत्याकांड  (मालाबार): केरल में खलीफा आंदोलन के नाम पर “जिहाद” घोषित हुआ। परिणाम – 10,000 से ज्यादा हिंदू मारे गए, सैकड़ों मंदिर तोड़े गए, हजारों औरतों को अगवा कर बलात्कार किया गया। ब्रिटिश रिपोर्ट में लिखा है – “यह मज़हबी जिहाद था, न कि कोई किसान विद्रोह।”

1947 – विभाजन के दंगे: पंजाब, बंगाल, दिल्ली, सिंध – हर जगह “जिहाद” और “काफिरों का खात्मा” के नारे लगे। लाखों हिंदू-सिख मारे गए, लाखों महिलाओं को नंगा किया गया, उनका सामूहिक बलात्कार किया गया और करोड़ों बेघर हुए। ट्रेनें लाशों से भरी आती थीं। वही जिहाद, वही नारा।

और अब 2025 में फिर वही नारा – “जुल्म होगा तो जिहाद भी होगा”।
मौलाना महमूद मदनी  “लव जिहाद”, “लैंड जिहाद” जैसे शब्दों को “साजिश” बता रहे हैं। लेकिन सच तो यह है कि ये शब्द पुलिस की FIR, कोर्ट की चार्जशीट और पीड़ित परिवारों के आंसुओं से बने हैं। केरल से कश्मीर तक, यूपी से बंगाल तक – हर जगह एक ही पैटर्न: हिंदू लड़की को फंसाओ, धर्म बदलवाओ, परिवार को धमकाओ। जब कोर्ट ने इसे “लव जिहाद” कहा, तब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी माना कि यह संगठित षड्यंत्र है। लेकिन मौलाना को लगता है यह सब “मुस्लिमों को बदनाम करने की साजिश” है।

मदरसों पर सवाल उठाने को वे “इस्लामोफोबिया” कहते हैं। लेकिन जब बिहार, यूपी, बंगाल के मदरसों से हथियार, जिहादी साहित्य और ISIS के झंडे बरामद होते हैं, तब सवाल तो बनेगा ही। जब बच्चे कुरान के साथ-साथ बम बनाना सीखते हैं, तब चुप कौन रहेगा?

मॉब लिंचिंग का रोना वही लोग रोते हैं जो गौ-हत्या करने वालों का समर्थन करते हैं। वक्फ बोर्ड की लाखों एकड़ जमीन पर अवैध कब्जे साबित हो रहे हैं, तब भी ये “मुस्लिम संपत्ति पर हमला” चिल्लाते हैं। बुलडोजर कानून के तहत चलता है – किसी ने अवैध निर्माण किया तो मस्जिद हो या मंदिर, सब ढहाया जाएगा। लेकिन नहीं, इनके लिए मुस्लिम का अवैध मकान भी “मज़हबी स्थल” बन जाता है।

सबसे गंभीर – सुप्रीम कोर्ट पर हमला। यह वही कोर्ट है जिसने तीन तलाक को खत्म किया, शाहबानो को न्याय दिलाया, अयोध्या में राम मंदिर का फैसला दिया। लेकिन अगर कोर्ट इनकी हर मनमानी को मंजूरी नहीं देता, तो वह “मुस्लिम-विरोधी” हो जाता है। यह सीधी न्यायपालिका की अवमानना है।

भारत ने 1946 का खून देख लिया है।
1921 का मालाबार, 1946 का नोआखाली, 1947 का विभाजन – सब जिहाद के नाम पर हुए थे।
अब फिर वही नारा? फिर वही धमकी?

नहीं चलेगा।
यह देश अब 1947 वाला कमजोर भारत नहीं है।
यहाँ संविधान सबसे ऊपर है, कोई मौलाना नहीं।

ऐसे भड़काऊ बयानों पर तुरंत देशद्रोह और मज़हबी उन्माद फैलाने का केस दर्ज होना चाहिए।
नहीं तो कल कोई और मदनी खड़ा होकर यही नारा और जोर से लगाएगा।

भारत चलेगा कानून से, जिहाद के नारे से नहीं।