मुर्तद कौन है ,और उसकी क्या सजा है ?

मुर्तद कौन है ,और उसकी क्या सजा है ?

“मुर्तद” एक इस्लामी शब्द है, जो अरबी भाषा से लिया गया है। इसका अर्थ है वह व्यक्ति जो जन्म से मुसलमान हो और इस्लाम छोड़ दे, या वह जो इस्लाम को स्वीकार करने के बाद उससे विमुख हो जाए। इस्लामी शास्त्रों में इसे “इर्तिदाद” कहा जाता है, जो धर्म से विमुख होने की प्रक्रिया को दर्शाता है। इस्लामी कानून (शरिया) के अनुसार, मुर्तद होना एक गंभीर अपराध माना जाता है, और इसके लिए विभिन्न इस्लामी विचारधाराओं में अलग-अलग दंड या परिणाम बताए गए हैं। हालांकि, आधुनिक समय में इसकी व्याख्या और लागू करने के तरीके विभिन्न देशों और समुदायों में अलग-अलग हो सकते हैं। आइए हम कुरान और हदीस के अनुसार “मुर्तद” (जो व्यक्ति इस्लाम छोड़ देता है) की सजा के बारे में जानते हैं।

कुरान में मुर्तद की सजा

कुरान में मुर्तद के लिए स्पष्ट रूप से कोई सजा (जैसे मृत्युदंड) का उल्लेख नहीं है। हालांकि, कुछ आयतें इस विषय से संबंधित मानी जाती हैं। उदाहरण के लिए:

सूरह अल-बकरा (2:217): इसमें कहा गया है कि जो व्यक्ति इस्लाम छोड़ देता है, उसके सभी अच्छे कर्म नष्ट हो जाते हैं और वह आखिरत में घाटे में रहेगा।

सूरह अन-निसा (4:89): इसमें उन लोगों का उल्लेख है जो ईमान लाने के बाद कुफ्र (अविश्वास) की ओर लौट जाते हैं। कुरान मुख्य रूप से आखिरत के परिणामों पर ध्यान देता है, जैसे कि सजा और नुकसान, न कि दुनिया में मृत्युदंड पर।

👉 निष्कर्ष: कुरान दुनियावी सजा का नहीं, बल्कि आखिरत के अंजाम का उल्लेख करता है।

हदीस में मुर्तद की सजा

हदीस में मुर्तद की सजा के बारे में अधिक स्पष्ट उल्लेख मिलता है। कुछ प्रसिद्ध हदीस इस प्रकार हैं:

1. सहीह बुखारी (हदीस 6922): नबी ﷺ ने फरमाया: “जो अपने धर्म (इस्लाम) को बदल दे, उसे मार डालो।” इस हदीस को कई इस्लामी विद्वान मुर्तद के लिए मृत्युदंड का आधार मानते हैं।

2. सहीह बुखारी (हदीस 3017): हज़रत अली (रज़ि.अ.) से रिवायत है कि नबी ﷺ ने कहा: “तीन लोगों का खून हलाल है: (1) शादीशुदा व्यक्ति जो ज़िना करे, (2) जो मुर्तद हो जाए, (3) जो किसी मुसलमान को बिना जायज़ कारण के क़त्ल करे।”

इन हदीसों के आधार पर पारंपरिक इस्लामी कानून (शरिया) में कुछ विद्वानों ने मुर्तद के लिए मृत्युदंड को उचित माना, लेकिन इसके लिए कुछ शर्तें रखी गईं:

धर्मत्याग (apostasy) पूरी तरह स्वेच्छा और जागरूकता के साथ होना चाहिए।

व्यक्ति को तौबा (पश्चाताप) करने का अवसर दिया जाना चाहिए।

यह सजा केवल इस्लामी शासन (Islamic State) के तहत लागू होती है, व्यक्तिगत स्तर पर नहीं।

आधुनिक संदर्भ

आज के समय में मुर्तद की सजा का लागू होना इस्लामी देशों और उनके कानूनों पर निर्भर करता है।

सऊदी अरब, ईरान: शरिया कानून के तहत मृत्युदंड संभव है।

तुर्की, इंडोनेशिया: धर्मत्याग को व्यक्तिगत स्वतंत्रता माना जाता है, और कोई कानूनी सजा नहीं दी जाती।

पाकिस्तान: कानून में सीधे तौर पर धर्मत्याग की सजा नहीं है, लेकिन सामाजिक रूप से इसे बहुत बुरा माना जाता है। मुर्तद घोषित होने वाले व्यक्ति को सामाजिक बहिष्कार, परिवार से अलगाव, हिंसा और कभी-कभी हत्या तक का सामना करना पड़ सकता है। पाकिस्तान दंड संहिता की धारा 295-C में पैगंबर मुहम्मद ﷺ का अपमान करने की सजा मृत्युदंड या आजीवन कारावास है। यद्यपि यह धारा सीधे तौर पर धर्मत्याग को संबोधित नहीं करती, लेकिन कुछ मामलों में इसे इस्लाम के खिलाफ अपमान के रूप में देखा जाता है।

बांग्लादेश: यहां धर्मत्याग के लिए कोई स्पष्ट कानून नहीं है। संविधान धर्म की स्वतंत्रता देता है, लेकिन चूँकि लगभग 90% आबादी मुस्लिम है, इसलिए सामाजिक और कानूनी मामलों में इस्लामी भावनाओं का प्रभाव रहता है। बांग्लादेश दंड संहिता की धारा 295-A के तहत धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने या अपमान करने की सजा दी जा सकती है (अधिकतम दो साल की कैद, जुर्माना या दोनों)। अगर कोई व्यक्ति सार्वजनिक रूप से इस्लाम छोड़कर अपमानजनक बयान देता है तो उस पर यह धारा लागू हो सकती है। कई मामलों में ब्लॉगर्स या लेखकों पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के आरोप लगे हैं—कुछ गिरफ्तार हुए, कुछ मारे गए और कुछ देश से निर्वासित भी हुए। ये मामले अक्सर धर्मत्याग से अधिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़े होते हैं।

भारत: यहां धर्मत्याग के लिए कोई कानून नहीं है, क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और संविधान का अनुच्छेद 25 सभी नागरिकों को अपनी पसंद का धर्म मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है। इसलिए धर्म परिवर्तन (चाहे इस्लाम छोड़ना हो या कोई अन्य धर्म) अपराध नहीं है। हालांकि, सामाजिक रूप से व्यक्ति खुलकर खुद को मुर्तद घोषित करने से बचते हैं, क्योंकि उन्हें और उनके परिवार को कई प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ सकता है—जैसे परिवार और मुस्लिम समाज से बहिष्कार, बच्चों की शादी में रुकावट, जान से मारने की धमकियाँ और हमले। इसी कारण अधिकतर लोग इसे समाजिक रूप से स्वीकार नहीं करते हैं।