भारत में इस्लाम का क्रूर आक्रमण व लूट — महमूद गजनवी

भारत में इस्लाम का क्रूर आक्रमण व लूट — महमूद गजनवी

विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार विल ड्यूरांट ने अपनी प्रसिद्ध कृति “स्टोरी ऑफ़ सिविलाइज़ेशन” में लिखा है —

“भारत पर मुसलमानों का आक्रमण सम्भवतः इतिहास की सबसे रक्तरंजित घटनाओं में से एक था।”

इस्लामी साम्राज्यवाद के आगमन से पहले भारत भले ही पूरी तरह शान्तिपूर्ण न रहा हो, किन्तु हिन्दू राजाओं के बीच होने वाले युद्धों में धर्म और मर्यादा के कुछ निश्चित नियम पालन किए जाते थे।

युद्ध के समय —

  • ब्राह्मणों और भिक्षुओं को कभी हानि नहीं पहुँचाई जाती थी,
  • गायों की हत्या वर्जित थी,
  • मंदिरों और मठों को नहीं छुआ जाता था,
  • स्त्रियों की अस्मिता की रक्षा की जाती थी,
  • सामान्य जनता को न मारा जाता था, न गुलाम बनाया जाता था,
  • उनके घरों पर हमला नहीं किया जाता था,
  • “माल-ए-गनीमत” (यानी लूट का बँटवारा — स्त्रियाँ, धन, वस्तुएँ, बच्चे) जैसी परंपरा नहीं थी।

युद्ध भी पूर्व सूचना देकर लड़ा जाता था, और रात में दोनों सेनाएँ विश्राम करती थीं।


इस्लामी आक्रमणकारियों की मानसिकता

इस्लामी आक्रमणकारी अपने साथ नबी की सुन्नत (उनके कथन, शिक्षाएँ और व्यवहार) को युद्ध का आधार बनाकर आए थे।
उनकी विचारधारा थी —

“विरोधी पक्ष के युद्ध हारने या भाग जाने के बाद गाँवों और नगरों को लूटो,
महिलाओं का बलात्कार करो,
बच्चों और स्त्रियों को गुलाम बनाओ,
घरों को आग लगाओ,
और इस्लाम न मानने वालों को मार डालो।”

गायें, ब्राह्मण और भिक्षु उनके विशेष निशाने पर रहते थे।
मंदिर और मठ उनकी लूट और आगज़नी के प्रमुख लक्ष्य होते थे।
जो नहीं मारे जाते थे, उन्हें पकड़कर गुलाम बनाकर बेचा जाता था।
उनकी दृष्टि में सैन्य सफलता का मापदंड था — “कितने शवों से कितना माल लूटा गया।”

यह सब इसलिए किया जाता था ताकि वे “अल्लाह और नबी की सेवा” में मुजाहिद और गाज़ी बनकर “जन्नत” का सुख पा सकें।


भारतीयों पर पहली बार इस भयावहता का अनुभव

भारतीयों के लिए यह सब अत्यंत विचित्र और भयावह था।
इतिहास ग्रंथ कन्हदाद प्रबंध में लिखा है —

“जीतने वाली सेना ने गाँवों को जला दिया, खेतों को उजाड़ दिया, लोगों की सम्पत्ति लूट ली,
ब्राह्मणों, बच्चों और स्त्रियों को बंदी बना लिया,
उन्हें कोड़ों से पीटा और एक चलती-फिरती जेल में गुलाम बनाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया गया।
उन्हें इस्लाम कबूल करवाया गया।”


महमूद गजनवी का उत्थान

सुबुक्तगीन की मृत्यु के बाद उसका पुत्र महमूद गजनवी (जन्म 971 ई.) सत्ता में आया।
महमूद को युद्धकला, राजनीति और प्रशासन की उत्तम शिक्षा दी गई थी।

सुबुक्तगीन ने अपने छोटे पुत्र इस्माईल को उत्तराधिकारी बनाया था, जिससे महमूद असंतुष्ट था।
उसने अपने भाई इस्माईल को युद्ध में पराजित कर बंदी बना लिया और गजनी का शासक बन बैठा।

खलीफ़ा अल-क़ादिर-बिल्लाह ने उसे उपाधियाँ दीं —
“अमीन-उल-मिल्लत” (धर्म का रक्षक) और “यमीन-उद-दौला” (साम्राज्य की दक्षिण भुजा)।

महमूद ने खलीफा के आदेश पर शपथ ली कि —

“वह हर वर्ष भारत पर एक सैन्य अभियान अवश्य चलाएगा।”

ब्रिटिश इतिहासकार सर हेनरी इलियट के अनुसार,

महमूद ने भारत पर कुल 17 आक्रमण किए।


महमूद गजनवी के प्रमुख आक्रमण

पहला आक्रमण (1000 ई.)

भारत के सीमावर्ती नगरों और किलों पर हमला कर लूटमार की और फिर गज़नी लौट गया।


दूसरा आक्रमण

10,000 घुड़सवारों की सेना के साथ फिर भारत आया। उद्देश्य था —
इस्लाम का प्रचार, गैर-इस्लामी प्रतीकों (मंदिर, मूर्तियों) का विनाश।

राजा जयपाल ने वीरता से सामना किया, परंतु पेशावर युद्ध में पराजित हुआ।
15,000 हिन्दू सैनिक मारे गए, उनके शव धरती पर बिखरे रहे।
जयपाल को पुत्र-पौत्र सहित बंदी बनाया गया।

इतिहासकार उत्बी लिखता है —

“उन्हें रस्सियों से बाँधकर सुल्तान के सामने इस प्रकार लाया गया मानो कोई अपराधी जहन्नुम में फेंका जाने वाला हो।”

जयपाल ने 2.5 लाख दीनार और 50 हाथी देने की शर्त पर मुक्ति पाई,
परंतु अपमान सह न सका और स्वयं को आग में जलाकर मृत्यु प्राप्त की।


तीसरा आक्रमण

भैरा के राजा ने महमूद की सहायता नहीं की थी। उसे पराजित कर आत्महत्या करने पर विवश किया गया।
असंख्य हिन्दुओं का कत्लेआम हुआ। केवल वे ही जीवित छोड़े गए जिन्होंने इस्लाम स्वीकार किया।


चौथा आक्रमण (1006 ई.)

मुल्तान के शासक अब्दुल फतह दाऊद पर हमला किया गया।
वह इस्लाम के करमाती संप्रदाय से था, जिसे महमूद “काफ़िर” मानता था।
युद्ध सात दिन चला। राजा आनंदपाल ने बहादुरी दिखाई परंतु पराजित हुआ।
महमूद ने जनता को 20,000 दिरहम दंड देकर जीवित छोड़ा।
उसने जयपाल के पौत्र सुखपाल को शासक बनाकर गज़नी लौट गया।


पाँचवाँ आक्रमण

जब सुखपाल ने इस्लाम और अधीनता त्याग दी,
महमूद ने पुनः आक्रमण कर उसे बंदी बना लिया।


छठा आक्रमण (1008 ई.)

आनंदपाल के विरुद्ध —
आनंदपाल ने अजमेर, दिल्ली, उज्जैन, ग्वालियर, कालिंजर और कन्नौज के राजाओं का संघ बनाया।
स्त्रियों ने अपने आभूषण बेचकर, निर्धनों ने अपनी कमाई से युद्ध में सहयोग दिया।
यह युद्ध अत्यंत भीषण था।

30,000 खोखर योद्धाओं ने नंगे पाँव और नंगे सिर युद्ध में उतरकर हजारों मुसलमानों को मार डाला।
महमूद भयभीत हुआ, पर तभी दुर्भाग्यवश आनंदपाल का हाथी डरकर भाग गया।
सेना में भगदड़ मच गई और मुसलमानों ने भयानक नरसंहार किया।


नगरकोट (कांगड़ा) पर आक्रमण

नगरकोट के किले में विशाल धन-संपत्ति संग्रहीत थी।
किला घेरकर जब्त कर लिया गया।

इतिहासकार फरिश्ता के अनुसार —

“महमूद 7 लाख स्वर्ण मुद्राएँ, 100 मन चाँदी के पात्र, 200 मन सोना, 2000 मन रजत और 20 मन रत्न लेकर लौटा।”

इतिहासकार कुतुबी लिखता है —

“जितने ऊँट मिल सके, उन पर लूट का माल लाद दिया गया और शेष अपने सैनिकों में बाँट दिया गया।”


डा. ईश्वरी प्रसाद लिखते हैं —

“अतुल संपत्ति प्राप्त कर महमूद की लालसा बढ़ गई,
और इसी कारण उसके आक्रमणों की संख्या आश्चर्यजनक रूप से बढ़ती गई।”


महमूद गजनवी की लूट, बर्बरता और विनाश की कथा एक अध्याय में समेटी नहीं जा सकती।
उसकी प्रत्येक यात्रा भारत के इतिहास में रक्त और आग की कहानी लिख गई।

(क्रमशः – अगले अध्याय में जारी…)