पुराने यहूदी और ईसाई मानते थे कि ज़मीन चपटी है। बाइबल में भी यही पुराना, ग़लत ख़्याल मौजूद है। लेकिन यूनानी वैज्ञानिकों ने सदियों पहले साबित कर दिया था कि ज़मीन गोल है और चाँद के घटने-बढ़ने की असली साइंसी वजह भी पता कर ली थी। मुहम्मद के ज़माने तक ये इल्म 900 साल पुराना था।
बाइबल और साइंस के बीच सैकड़ों साल से टकराव चल रहा था। इसलिए यहूदियों ने मुहम्मद से पूछा (जो दावा करते थे कि अल्लाह की तरफ़ से वह्य आती है): “चाँद पहले पतला दिखता है, फिर बढ़ता है, गोल हो जाता है, फिर घटकर फिर पतला हो जाता है – वजह क्या है?”
यहूदियों को लगा शायद मुहम्मद का अल्लाह जवाब देगा और यूनानी वैज्ञानिकों को ग़लत साबित कर देगा।
लेकिन हुआ क्या? अल्लाह ने सवाल तक नहीं समझा!
कुरान 2:189 “लोग तुमसे नए चाँद के बारे में पूछते हैं। कह दो: ये लोगों के लिए वक़्त मालूम करने और हज के लिए हैं।”
इमाम क़ुर्तुबी ने इस आयत की तफ्सीर में लिखा: मुआज़ बिन जबल ने कहा: “ऐ अल्लाह के रसूल! यहूदी हमारे पास आते हैं और अहिल्ला (नए चाँद) के बारे में सवाल करते हैं कि ये पहले पतला क्यों दिखता है, फिर बढ़ता है, गोल होता है, फिर घट जाता है?” तो अल्लाह ने ये आयत नाज़िल की।
कुरान के जवाब में तीन लेवल की नादानी
- पहला लेवल – नादानी क़ुबूल करना अगर कुरान कहता “ये मेरे इल्म में नहीं” तो कम-से-कम सच होता। लेकिन अल्लाह का इल्म न होना = अल्लाह नहीं रहा।
- दूसरा लेवल – नादानी छिपाना सवाल कुछ और था, जवाब बिल्कुल बे-सिर-पैर। जैसे कोई बच्चा सवाल न समझे और कुछ भी बक दे ताकि नादानी छिप जाए। ये सिर्फ़ नादानी नहीं, बेईमानी भी है।
- तीसरा लेवल – सवाल समझ ही नहीं पाया यहूदियों ने साइंसी वजह पूछी। जवाब मिला धार्मिक कैलेंडर का। अल्लाह ने सवाल तक नहीं समझा। ये नादानी का सबसे निचला स्तर है।
देखिए:
- जवाब में एक फ़ीसद भी साइंस नहीं।
- सवाल कुछ और, जवाब कुछ और।
- जो जवाब दिया (चाँद से वक़्त पता चलता है) वो यहूदियों को पहले से मालूम था।
यानी नया कुछ नहीं बताया, सिर्फ़ मायूसी दी।
ये सुनहरा मौक़ा था
अगर मुहम्मद सचमुच नबी होते तो साइंसी हक़ीक़त बताकर यूनानी वैज्ञानिकों को सही और बाइबल को ग़लत साबित करते। लेकिन कुरान ने ख़ामोशी और नादानी दिखाई। आज भी मुसलमान इसी आयत को “मुजिज़ा” बताते हैं – जबकि दुनिया देख रही है कि ये पूरी तरह फ़ेल जवाब था।
900 साल पहले साइंस ने सवाल हल कर दिया था
यूनानी वैज्ञानिक एरिस्टार्कस (इस्लाम से 750 साल पहले) ने न सिर्फ़ बताया कि चाँद गोल है, बल्कि उसका और सूरज का साइज़ भी नाप लिया – चाँद की छाया से। वो आधा चाँद (half moon) देखकर त्रिकोणमिति से हिसाब लगाता था।
नतीजा
- यहूदियों ने साइंसी सवाल पूछा।
- अल्लाह ने सवाल तक नहीं समझा।
- जवाब दिया धार्मिक कैलेंडर का – जो पहले से मालूम था।
- 900 साल पुराना साइंसी जवाब देने की ताक़त तक नहीं थी।
क्या अल्लाह की “आख़िरी किताब” 900 साल पुराना सवाल भी हल नहीं कर सकती? अगर ये किताब आसमान से आई होती तो नादानी और बे-सिर-पैर जवाब क्यों देती?
यहूदियों ने इसी आयत को सुनकर मुहम्मद पर यकीन कैसे करते?





