बहराइच जिला अदालत ने 11 दिसंबर 2025 को राम गोपाल मिश्रा की गोली मारकर हत्या करने वाले सरफराज को फांसी की सजा सुनाई है। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था, और कोर्ट ने फैसले में हत्या की क्रूरता को विस्तार से उजागर किया। सरफराज के पिता अब्दुल हमीद और उसके दो भाइयों फहीम व तालिब समेत नौ लोगों को उम्रकैद की सजा दी गई। फर्स्ट एडिशनल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशंस जज पवन कुमार शर्मा ने यह फैसला सुनाया, जिसमें घटना की पूरी पृष्ठभूमि, हमले की बर्बरता और कानूनी पहलुओं पर गहन चर्चा की गई है।
घटना की पृष्ठभूमि: दुर्गा प्रतिमा विसर्जन जुलूस में भड़की हिंसा
13 अक्टूबर 2024 को बहराइच के महाराजगंज बाजार में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन जुलूस के दौरान हिंसा भड़क उठी। राम गोपाल मिश्रा अपने भाई हरिमिलन मिश्रा और अन्य रिश्तेदारों के साथ जुलूस देखने गए थे। जुलूस में कई मूर्तियां ट्रैक्टरों और गाड़ियों पर रखी गई थीं, और यह तय रास्ते से गुजर रहा था। जैसे ही जुलूस अब्दुल हमीद के घर के सामने पहुंचा, DJ पर बज रहे गानों पर आपत्ति जताई गई। इससे पहले गणेश चतुर्थी विसर्जन जुलूस को भी इसी जगह रोका गया था, लेकिन तब हिंसा नहीं हुई।
गवाहों के अनुसार, म्यूजिक बंद करने की मांग पर हिंदुओं ने इनकार किया, जिसके बाद DJ का तार खींच दिया गया। इससे झगड़ा शुरू हो गया, जो जल्द ही अफरा-तफरी में बदल गया। छत से जुलूस पर पत्थर, ईंटें और बोतलें फेंकी गईं। क्या बात है कि ये भी साफ हो जाता है कि हमले की तैयारी पहले से ही थी। लोग दहशत में भागने लगे, और दुकानदारों ने दुकानें बंद कर दीं। इस बीच राम गोपाल मिश्रा को जबरन अब्दुल हमीद के घर में घसीटा गया, और दरवाजा बंद कर दिया गया। घर के अंदर से गोलियों की आवाजें आईं, और कई राउंड फायरिंग हुई। राम गोपाल को गंभीर रूप से घायल अवस्था में बाहर निकाला गया, लेकिन अस्पताल में उनकी मौत हो गई।
इस घटना से पूरे जिले में दहशत फैल गई, इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं, और अतिरिक्त पुलिस फोर्स तैनात की गई। कोर्ट ने इसे धार्मिक जुलूस पर सुनियोजित हमला बताते हुए कहा कि इससे कानून-व्यवस्था लंबे समय तक बिगड़ी रही।
FIR और जांच की प्रक्रिया: हरिमिलन मिश्रा की शिकायत से शुरू हुई कार्रवाई
राम गोपाल मिश्रा के भाई हरिमिलन मिश्रा ने घटना के बाद FIR दर्ज कराई। उन्होंने पुलिस को बताया कि उनके भाई को अब्दुल हमीद, उसके बेटों और अन्य लोगों ने घर में घसीटकर गोली मारी। FIR में कुछ अज्ञात लोगों का भी जिक्र था। बचाव पक्ष ने FIR की टाइमिंग पर सवाल उठाए, दावा किया कि यह देरी से दर्ज हुई और मनगढ़ंत है। लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि हालात को देखते हुए पहले घायल को अस्पताल ले जाना स्वाभाविक था।
जांच के दौरान पुलिस को इंटेलिजेंस इनपुट मिले कि आरोपी नेपाल बॉर्डर की ओर भाग रहे हैं। 17 अक्टूबर 2024 को अब्दुल हमीद, सरफराज, फहीम और तालिब को एक आइसक्रीम फैक्ट्री के पास से गिरफ्तार किया गया। पूछताछ में उन्होंने हत्या में इस्तेमाल लाइसेंसी 12-बोर SBBL गन का जिक्र किया, जो नहर पुल के पास छिपाई गई थी। रिकवरी के दौरान सरफराज और तालिब ने भागने की कोशिश की और पुलिस पर फायरिंग की, जिसके जवाब में पुलिस ने उन्हें पैरों में गोली मारी। फोरेंसिक रिपोर्ट ने पुष्टि की कि राम गोपाल के शरीर से मिली गोलियां इसी हथियार से चली थीं।
कोर्ट ने जांच को निष्पक्ष बताते हुए कहा कि इससे आरोपी सीधे हत्या से जुड़े।
गवाहों के बयान: चश्मदीदों ने खोली क्रूरता की परतें
ट्रायल में कई चश्मदीद गवाहों ने बयान दिए। हरिमिलन मिश्रा ने बताया कि राम गोपाल को घर में घसीटने के बाद गोलियां चलीं। उनके चचेरे भाई राजन मिश्रा ने इसकी पुष्टि की और कहा कि राम गोपाल को अस्पताल ले गए, जहां उन्हें मृत घोषित किया गया। अभिषेक मिश्रा ने राम गोपाल को घसीटते देखा और बाहर निकालने पर उनके शरीर पर गोली के निशान देखे। शशिभूषण अवस्थी ने DJ तार खींचने से शुरू हुई हिंसा और बाजार में फैली दहशत का वर्णन किया।
बचाव पक्ष ने दावा किया कि गवाह रिश्तेदार होने के कारण पक्षपाती हैं, लेकिन कोर्ट ने कहा कि जुलूस में प्रभावित लोग अक्सर जान-पहचान वाले होते हैं। उनकी गवाही एकसमान और अन्य सबूतों से समर्थित है, इसलिए विश्वसनीय है।
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट: 40 घाव, उखड़े नाखून और पास से चली गोलियां
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने हत्या की वीभत्सता उजागर की। राम गोपाल के शरीर पर 40 घाव थे, जिसमें छाती, गर्दन, चेहरा और ऊपरी अंगों पर प्रवेश और निकास के निशान थे। घावों पर कालापन दर्शाता है कि गोलियां नजदीक से मारी गईं। दोनों पैरों की उंगलियों पर जलने के निशान थे, नाखून उखड़ गए थे। आंखों पर कटा घाव था, फेफड़ों में गड्ढे और 2.5 लीटर खून जमा था, दिल में थक्का था। मौत शॉक और रक्तस्राव से हुई।
कोर्ट ने इसे क्रूर बताते हुए कहा कि इतने घाव गलती से नहीं लग सकते। यह बचाव पक्ष की दलील (कि गोली अफरा-तफरी में लगी) को खारिज करता है।
बचाव पक्ष की दलीलें: उकसावे का दावा और वीडियो का जिक्र
बचाव पक्ष ने दावा किया कि राम गोपाल ने अब्दुल हमीद के घर पर हरा झंडा फाड़ा, जो वीडियो में दिखता है, और यह उकसावा था। उन्होंने घटना को अचानक बताते हुए FIR की टाइमिंग पर सवाल उठाए। पोस्टमॉर्टम में धारदार हथियार के निशान न होने को कमजोरी बताया। लेकिन कोर्ट ने कहा कि भले झंडा हटाया गया हो, यह बर्बर हिंसा का बहाना नहीं बन सकता। कानूनी शिकायत का रास्ता था, न कि लिंचिंग। लाइसेंसी हथियार का इस्तेमाल सेल्फ-डिफेंस के लिए था, न कि हमले के लिए। दलीलें अंदाज पर आधारित हैं, सबूत नहीं।
**कोर्ट का आकलन: गैर-कानूनी जमावड़ा और साझा मकसद**
कोर्ट ने कहा कि आरोपी गैर-कानूनी जमावड़े का हिस्सा थे, जिसमें जुलूस पर आपत्ति, पत्थरबाजी, घसीटना और फायरिंग शामिल थी। यह अचानक नहीं, बल्कि सुनियोजित था। सभी ने मिलकर काम किया, भले भूमिकाएं अलग हों। सरफराज का रोल ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ कैटेगरी में आता है, क्योंकि हत्या कोल्ड-ब्लडेड थी।
सजा का आधार: सामाजिक न्याय
कोर्ट ने सजा को न्याय और सामाजिक संतुलन के लिए जरूरी बताया। इससे समाज अनुशासित रहता है। ऐसी क्रूरता पर सख्त सजा न देने से न्याय में भरोसा कम होगा।
सजा का विवरण: फांसी, उम्रकैद और जुर्माना
सरफराज को फांसी, 8 साल सश्रम कारावास और 1,30,000 रुपये जुर्माना। अब्दुल हमीद को उम्रकैद और 1,81,000 रुपये जुर्माना। तालिब, फहीम, सैफ अली, जावेद खान, मोहम्मद जिशान, शोएब खान, ननकऊ और मारूफ अली को उम्रकैद और 1,50,000 रुपये जुर्माना। खुर्शीद, शकील अहमद और मोहम्मद अफजल बरी। सजाएं एक साथ चलेंगी, मौत की सजा हाईकोर्ट कन्फर्मेशन के लिए भेजी गई।
फैसले का व्यापक प्रभाव: उकसावे का कोई बहाना नहीं
यह फैसला याद दिलाता है कि मज़हबी उकसावा हिंसा का लाइसेंस नहीं है। राम गोपाल की मौत ने एक परिवार बर्बाद किया, उनकी शादी हाल ही हुई थी। इसने समाज में धार्मिक सद्भाव और कानून के पालन पर जोर दिया।





