संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) के 18वें ‘फोरम ऑन माइनॉरिटी इश्यूज’ में 28 नवंबर 2025 को बांग्लादेशी हिंदू अधिकार कार्यकर्ता दिपन मित्रा ने जो तथ्य रखे, वे किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के रोंगटे खड़े कर देने वाले हैं। फ्रांस में निर्वासित जीवन जी रहे इस कार्यकर्ता ने 1000 से अधिक प्रलेखित मामलों के साथ साबित किया कि 5 अगस्त 2024 के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ एक व्यवस्थित जातीय सफाया (ethnic cleansing) चल रहा है — और इस पूरे अभियान में मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार न केवल मौन सहमति दे रही है, बल्कि सक्रिय रूप से सहयोग भी कर रही है।

पिछले एक साल का खौफनाक आंकड़ा (दिपन मित्रा द्वारा UN को सौंपा गया)
- 183+ हिंदू हत्याएं
- 219 हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार
- 78 हिंदू-बौद्ध लड़कियों का जबरन इस्लाम में धर्मांतरण
- सैकड़ों मंदिर-मठ तोड़े गए, हजारों घर-दुकानें लूटी और जलाई गईं
- 176 हिंदू शिक्षक, 100+ हिंदू पुलिस अधिकारी और दर्जनों वरिष्ठ अधिकारी बर्खास्त
- पुलिस और BGB में एक भी हिंदू की भर्ती नहीं
यूनुस शासन का खुला इस्लामी एजेंडा
दिपन मित्रा ने ऑपइंडिया से साफ कहा —
“यूनुस पूरी तरह जमात-ए-इस्लामी और इस्लामवादी समूहों के साथ मिलकर बांग्लादेश को इस्लामी देश बनाना चाहते हैं। उनका लक्ष्य अगले चुनाव में जमात को सत्ता दिलाना है। अवामी लीग को पहले ही प्रतिबंधित करने की तैयारी है, अब BNP को भी बाहर करने की कोशिश हो रही है।”
और यह कोई झूठा दावा नहीं है। तथ्य खुद चीख-चीखकर बोल रहे हैं:
- प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी को वैध कर दिया गया
- जेलों से सैकड़ों इस्लामी आतंकवादी छोड़े गए (अब तक 70 आतंकवादी फरार)
- ISKCON भिक्षु चिन्मय कृष्ण दास प्रभु को एक साल से फर्जी राजद्रोह केस में जेल में सड़ाया जा रहा है — सिर्फ इसलिए कि उन्होंने हिंदुओं पर अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई
- बाउल गायक राहुल सरकार को “ईशनिंदा” के नाम पर गिरफ्तार किया गया, भीड़ ने खुलेआम “बाउलों को जिबह करो” के नारे लगाए
चिटगाँग हिल ट्रैक्ट्स में आदिवासियों का नरसंहार
इस्लामवादी बसने वालों और बांग्लादेशी सेना ने मिलकर पहाड़ी जनजातियों पर जो हमला किया, उसमें:
- 8 आदिवासी मारे गए, 100+ घायल
- 175 दुकानें, 200 से अधिक व्यवसाय जले
- बौद्ध मैत्री विहार में लूटपाट और तोड़फोड़
भारत आखिरी उम्मीद, पर अब तक खामोश क्यों?
दिपन मित्रा की पुकार दिल दहला देने वाली है —“भारत हमारी आखिरी उम्मीद है। अफगानिस्तान कभी हिंदू-बौद्ध देश था, पाकिस्तान में हिंदू नाममात्र रह गए, अब बांग्लादेश उसी रास्ते पर है। अगर भारत ने अब भी चुप रहा, तो बहुत देर हो जाएगी।”
लेकिन दुखद सच्चाई यह है कि यूनुस जब-जब भारत पर “फेक न्यूज” फैलाने का आरोप लगाते हैं, तब भारत सरकार की तरफ से कोई ठोस बयान तक नहीं आता। न कोई कड़ा प्रतिवाद, न कोई अंतरराष्ट्रीय मंच पर बांग्लादेशी हिंदुओं की पैरवी।
अंतिम सवाल
क्या भारत सरकार को इंतजार है कि बांग्लादेश का हिंदू समुदाय पूरी तरह खत्म हो जाए, तभी कोई एक्शन लिया जाएगा?
या फिर “सभी पक्षों को संयम बरतने” की घिसी-पिटी लाइन ही हमारी आखिरी विदेश नीति रह जाएगी?
बांग्लादेश में जो हो रहा है, वह सिर्फ “आंतरिक मामला” नहीं है। यह हमारे पड़ोस में हिंदुओं का एक और नरसंहार है।
और अगर आज हम चुप रहे, तो कल कोई नहीं पूछेगा कि 1971 में हमने बांग्लादेश को आजाद कराने के लिए 3,900 भारतीय सैनिक क्यों शहीद किए थे।
समय बहुत कम है।
भारत जागे, या हमेशा के लिए शर्मिंदा रहे?





